IPO New Rules SEBI: भारत में रिटेल निवेशकों को IPO में निवेश करना और IPO को आसानी से समझने में मदद करने के लिए मार्केट रेगुलेटरी SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) की एक अहम बोर्ड मीटिंग बुधवार को होने जा रही है।
इस बैठक पर शेयर बाजार और निवेशकों की खास नजर है, क्योंकि इसमें IPO और म्यूचुअल फंड से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियमों पर फैसला लिया जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, बैठक में म्यूचुअल फंड रेगुलेशन, स्टॉकब्रोकर नियम और ICDR फ्रेमवर्क जैसे अहम विषयों में सुधार पर मंथन किया जाएगा। इस मीटिंग का मकसद Ease of Doing Business को बढ़ावा देना यानी बिज़नेस को सुचारू रूप से चलाना आसान बनाना और भारतीय बाजार में रिटेल निवेशकों की भागीदारी को और मजबूत करना है।
SEBI की इस बोर्ड बैठक में IPO lock-in से जुड़ी समस्याओं और डिस्क्लोजर सिस्टम को सरल बनाने पर भी अहम फैसले लिए जा सकते हैं।
IPO Lock-in में क्या है समस्या?
मौजूदा नियमों के तहत ,IPO से पहले ज़्यादातर कंपनी शेयर प्रमोटर, संस्थापक, कर्मचारी और एंकर निवेशकों के पास मौजूद होते है उस Pre-issue shares को IPO के allotment के बाद 6 महीने तक lock-in में रखना जरूरी होता है।
इसका मकसद यह होता है कि IPO की लिस्टिंग के तुरंत बाद शेयर बेचकर शेयर प्राइस गिराया न जाए या किसी तरह की धोखाधड़ी न हो।
लेकिन समस्या तब आती है जब ये शेयर pledge (गिरवी) रखे गए होते हैं, जैसे किसी म्यूचुअल फंड या अन्य संस्था के पास। ऐसे मामलों में सही रिकॉर्ड रखना मुश्किल हो जाता है।
इसी वजह से Depositories (CDSL/NSDL) इन Pledged shares को “Lock-in” के रूप में सही तरीके से tag नहीं कर पातीं। इसके चलते compliance से जुड़ी दिक्कतें आती हैं और कई बार IPO listing में देरी हो जाती है।
कुछ मामलों में non-cooperative या trace न होने वाले shareholders की वजह से पूरी प्रक्रिया अटक जाती है। खासकर जब एक साथ कई IPO लॉन्च होते हैं, तब इन सभी चीजों को संभालना और मुश्किल हो जाता है।
SEBI क्या बदलाव कर सकता है?
SEBI अब ICDR नियमों में संशोधन पर विचार कर रहा है, ताकि technology-enabled mechanism के जरिए pledged pre-issue shares को भी lock-in के तौर पर mark किया जा सके।
अगर यह बदलाव लागू होता है, तो IPO compliance आसान होगी,Listing में देरी कम होगी और Shareholders और depositories के बीच तालमेल बेहतर होगा |
Abridged Prospectus की जगह आएगा नया आसान डॉक्यूमेंट
SEBI एक और बड़े प्रस्ताव पर भी विचार कर सकती है। इसके तहत मौजूदा Abridged Prospectus को हटाकर उसकी जगह 15–20 पेज का “Offer Document Summary” लाया जा सकता है।
इस नए डॉक्यूमेंट में IPO से जुड़ी सारी अहम जानकारी आसान भाषा में दी जाएगी, ताकि पूरा भारी-भरकम IPO Prospectus पढ़ने के बजाय सामान्य निवेशक सिर्फ इसी सारांश को पढ़कर जरूरी जानकारी समझ सके।
इससे निवेशक कम समय में, बिना भ्रम के IPO को समझकर सही निर्णय ले सकेंगे।
IPO निवेशकों को क्या होगा फायदा?
इन बदलावों से IPO निवेशकों को कई सीधे फायदे मिल सकते हैं:
- भारी और कानूनी भाषा वाले डॉक्यूमेंट पढ़ने की जरूरत नहीं होगी
- IPO की जानकारी कम समय में और साफ तरीके से मिलेगी
- नए निवेशकों के लिए IPO समझना आसान होगा
- पूरी प्रक्रिया तेज़, पारदर्शी और investor-friendly बनेगी
IPO सिस्टम में बड़ा सुधार संभव
SEBI के ये IPO New Rules से IPO बाजार के लिए structural सुधार साबित हो सकते हैं। एक तरफ lock-in से जुड़ी तकनीकी दिक्कतें दूर होंगी, वहीं दूसरी तरफ डिस्क्लोजर सिस्टम को सरल बनाया जाएगा।
अगर बोर्ड से इन प्रस्तावों को मंजूरी मिलती है, तो आने वाले IPOs में listing में देरी कम होगी, compliance आसान होगा और निवेशकों का अनुभव पहले से बेहतर देखने को मिल सकता है।
